C. G. Sayri of Chhatrapal
(01) सरी जिनगी आंखी म एकठन सपना रहिगे, कतको बछर बितगे फेर ओ बेरा के सुरता रहिगे। कोनजनी कईसननता रहिस ओखर अउ मोर, जम्मो मनखे भुलागे, भईगे ओखरेच चेहरा के सुरता रहिगे।। (02) मोला तय दगा देके मोर दिल ल काबर दुखाय, तोर सुरता रहि-रहि के आथे तही मोर अंतस म समाय।। (03) अपन मन के बात ल अपन मयारू ल बताय ल लगथे, कभू-कभू मया म खिसीयाय ल लगथे। कभू तो मेसेज कर दे कर संगवारी, एकरो बर तोला जोजियाय ल ल...